'अयोध्या' की 'एक बूंद' छोड़ गेह निज सीप मुख में पहुंचकर बन जाती है मोती। 'अयोध्या' की 'एक बूंद' छोड़ गेह निज सीप मुख में पहुंचकर बन जाती है मोती।
"मैं शहर हूँ मैं गांव से बहुत आगे निकल चुका हूँ , गांव को तो मैं हजार कदम पीछे छो "मैं शहर हूँ मैं गांव से बहुत आगे निकल चुका हूँ , गांव को तो मैं हजा...
छोड़ दो बुआई खुशी स्वचालित है। छोड़ दो बुआई खुशी स्वचालित है।
तेरी कल्पनाओं का है ह्रदय में गेह प्रियवर... तेरी कल्पनाओं का है ह्रदय में गेह प्रियवर...
हमने सवेरे जी लिये और शामें ढलती छोड़ दीं फिर चराग़ों को बुझाके आँखे जलती छोड़ दीं हमने सवेरे जी लिये और शामें ढलती छोड़ दीं फिर चराग़ों को बुझाके आँखे जलती छोड...
और जब हम थक जाते हैं दुहरा -दुहराकर , फिर उसे ही पचासों बार हमसे लिखवाते हैं। और जब हम थक जाते हैं दुहरा -दुहराकर , फिर उसे ही पचासों बार हमसे लिखवाते हैं।